2010 में शीतल भाटकर और उनके पति विक्रांत विकास भटकर अपने डेढ़ साल के बेटे, आर्या को एक Pediatric Neurologist के पास लेकर गए थे क्योंकि उसे चलने में दिक्कत होती थी। लेकिन डॉक्टर ये बता नहीं पाए कि उनके बेटे को कौन सी बीमारी है।

डॉक्टर का कहना था कि ये विरासत में मिली बीमारियां हैं जो बॉडी के सेल्स में स्पेसिफिक लिपिड (वसा) या कार्बोहाइड्रेट (शर्करा) को तोड़ने वाले स्पेसिफिक एंजाइमों की कमी के कारण होता है। इस तरह की बीमारियों के लक्षण अलग अलग होते हैं। इस बीमारी के कारण व्यक्ति अंधा, बहरा, शरीर का देरी से बढ़ना और दौरे पड़ने जैसी चीजें होती है।

इस बीमारी के बारे में जानने के लिए कई सारे टेस्ट कराने पड़ते लेकिन मुंबई के किसी भी लेबोरेटरी में इतनी सुविधा नहीं थी कि जांच हो सके।

शीतल के बताए अनुसार "उन्होंने बहुत प्रयास किए लेकिन उनके बेटे की बीमारी का कोई इलाज नहीं मिला। मुझे और मेरे पति को बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन कुछ नहीं हो पाए। जब हमारे से संपन्न लोगों के साथ ऐसा हो सकता है तो उन लोगों का क्या हाल होता होगा जिन्हें ये सारी सुविधा नहीं मिल पाती होगी। उस दौरान मेरे दिमाग में ये ख्याल आते रहते थे।"

शीतल ने बिना इंतजार किए WITH AARYA नाम से एक पहल शुरू की और टर्मिनल विकारों से पीड़ित मरीजों के लिए आवश्यक जानकारी प्रदान करने लगी। दोनों ने पूरे मुंबई में कई डॉक्टरों से संपर्क किया और ऐसे मामलों की जानकारी देने और उनका इलाज करने में सक्षम लोगों का एक नेटवर्क बनाया।

विद़्‌आर्या (WITH AARYA) को तब शुरू किया गया था जब उनके बेटे आर्य का परीक्षण चल रहा था। हालांकि, उनके सभी प्रयासों के बावजूद, उन्होंने आर्य को उसके सातवें जन्मदिन से तीन महीने पहले 2015 में खो दिया।

लोगों के इलाज के लिए पैसों की जरूरत थी। इसलिए वे परीक्षण के लिए जरूरतमंदों को सहायता प्रदान करने पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं। चूंकि अधिकांश भंडारण विकारों में दवाएं नहीं थीं, माता-पिता/रिश्तेदार केवल सहायक देखभाल प्रदान कर सकते हैं जो इस अवधि के दौरान जीवन को थोड़ा बेहतर बनाता है।

WITH AARYA के माध्यम से, देखभाल करने वालों को इस बारे में शिक्षित किया जाता है कि इस बारे में क्या करना है।

शीतल के बताए अनुसार "केईएम अस्पताल के बाल रोग वार्ड में अपने समय के दौरान, मैंने कई मरीज के रिश्तेदारों की दुर्दशा देखी। कुछ के पास तो खुद खाना खरीदने तक के पैसे नहीं थे, मरीजों के लिए जरूरी दवा तो भूल ही जाइए।"

एलएसडीएसएस (लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर सोसाइटी) नामक संगठन की सदस्य बनने के बाद शीतल की बीमारी के बारे में जानकारी बढ़ी है, जो भंडारण विकारों से निपटने और रोगियों को सरकार और अन्य संस्थानों से जुड़ने में मदद करने वाली एक राष्ट्रीय स्तर की संस्था है।

अब उन्हें उम्मीद है कि उनके प्रयास से ऐसे रोगियों के जीवन में बदलाव लाएंगे।