कबाब और लखनऊ शहर का प्रेम प्रसंग सदियों पुराना है। इतिहासकारों का मानना ​​है कि 14 वीं शताब्दी के अवध में कीमा बनाया हुआ मांस एक मुख्य नाश्ते के रूप में खाया जाता था। लेकिन 17वीं शताब्दी में ही अवध के कबाबों ने एक तरह की क्रांति देखी है।

हम सभी लखनऊ के फेमस डिश टुंडे कबाब के बारे में जानते हैं। लेकिन क्या आपको ये पता है कि कबाब लखनऊ की नहीं बल्कि भोपाल में पहली बार बनाई गई थी। टुंडे कबाब, अवध के नवाब से संबंधित है। टुंडे कबाब की उत्पत्ति 17वीं शताब्दी में हुई थी। तत्कालीन नवाब बूढ़े थे और उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनके दांत भी झड़ने लगे थे। इसलिए वह अपने पसंदीदा व्यंजन नहीं खा पा रहे थे। जिससे नवाब को बहुत दुख हुआ कि वह अपने पसंदीदा कबाब का आनंद नहीं ले पा रहा थे।

उस समय उनके खानसाम हाजी साहब ने उनके स्वाद और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए ऐसा कबाब तैयार किया जो मुँह में जाते ही घुल जाता था। नवाब और उनकी बेगम को ये कबाब बहुत पसंद आया था।

इसके कुछ समय बाद हाजी साहब अपने परिवार को लेकर लखनऊ आ गए और यहां अकबरी गेट पर साल 1905 में उन्होंने टुंडे कबाब की छोटी सी दुकान खोली। उस समय उन्हें क्या पता था कि एक दिन टुंडे कबाब देश भर में प्रसिद्ध हो जाएगा।

टुंडे कबाब को यही नाम क्यों पड़ा इसके पीछे भी एक कहानी है। दरअसल इस वक्त उस दुकान के मालिक रईस अहमद हैं। उनके पिता हाजी मुराद को पतंग बाजी का बड़ा शौक था। एक दिन वो पतंग उड़ाते हुए गिर पड़े और उनका हाथ टूट गया। इसके बाद उन्हें अपना हाथ कटवाना पड़ा।

इसके बाद जब उनकी तबीयत ठीक हुई तो उन्होंने फिर से दुकान पर बैठना शुरू किया। उनके हाथ न होने की वजह से लोग उन्हें टुंडे बुलाने लगे। टुंडे का कबाब इलाके में फेमस हो गया। फिर लोगों ने ही दुकान का नाम टुंडे कबाब रखा गया।

ये बात तो हम सभी जानते है कि किसी भी डिश की रेसिपी उसका दिल होता है। इसी वजह से हाजी साहब से लेकर उनकी पीढ़ियों ने कभी टुंडे कबाब की रेसिपी नहीं बताई। उनके घर की औरतों को भी इसकी रेसिपी नहीं पता है। कबाब बनाने के लिए सामग्री भी ये लोग अलग अलग दुकान से लेते हैं।



लॉकडाउन से पहले इस दुकान पर ग्राहक की भीड़ लगी रहती थी। इनकी सिग्नेचर डिश चिकन कबाब खाने लोग दूर दूर से आते थे। लेकिन लॉकडाउन खुलने के बाद इस डिश का नाम बदल कर मजबूरे के कबाब रख दिया गया है। हालांकि इस दुकान के लॉयल कस्टमर को नाम से कोई मतलब नहीं है। वो तो स्वाद ही है जो उन्हें इस दुकान पर खींच लाता है।