एक महान सोशल वर्कर, एक शानदार इंजीनियर, एक अच्छी हाउसवाइफ, एक बेस्टसेलर राइटर और एक सादगी पसंद स्‍त्री, उन्होंने अपने जीवन के हर पड़ाव में खुद को साबित किया है। सुधा मूर्ति, देश की पहली महिला इंजीनियर जिन्होंने समाज की दकियानूसी सोच से ऊपर उठकर इंजीनियरिंग करने का फैसला किया और लाखों लड़कियों के लिए इंजीनियरिंग का रास्ता खोल दिया।

19 अगस्त 1950 को कर्नाटक में सुधा मूर्ति का जन्म हुआ था। सुधा मूर्ति ने 12वीं की पढ़ाई के बाद एक इंजीनियिंग कॉलेज से अपना ग्रेजुएशन पूरा किया। उस वक्त में लड़कियों का इंजीनियरिंग करना ऐसी बात थी जो न तो कभी किसी ने कही थी और न ही सोची थी। लेकिन सुधा के जिद के आगे सबको झुकना पड़ा और उनका कॉलेज में दाखिला हुआ। जब सुधा एडमिशन के लिए पहुँची तो BVB College of Engineering and Technology के प्रिंसिपल ने सुधा के सामने 3 शर्तें रखीं। पहली शर्त थी कि उन्हें ग्रेजुएशन खत्म होने तक साड़ी में ही आना होगा, दूसरी शर्त कैंटीन जाना मना था और तीसरी शर्त थी कि सुधा कॉलेज के लड़कों से बात नहीं करेंगी।

सुधा ने एक TV शो में बताया था कि पहली दो शर्तें तो पूरी हो गईं क्योंकि उनको साड़ी पहनने से कोई आपत्ति नहीं थी। और कैंटीन का खाना वैसे भी अच्छा नहीं था। लेकिन तीसरी शर्त खुद उनके कॉलेज के लड़कों ने पूरी नहीं होने दी। जैसे ही सुधा ने फर्स्ट ईयर में टॉप किया, सारे लड़के खुद उनसे बात करने आने लगे।

सुधा ने शो में बताया था कि 600 बच्चों की स्ट्रेंथ वाले कॉलेज में 599 लड़कों के बीच वे अकेली लड़की थीं। ऐसे में कॉलेज में टॉयलेट भी लड़कों के लिए ही था। जैसे-तैसे उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। इस दर्द का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं,जैसे इंफोसिस शुरू हुआ सुधा ने सबसे पहले देशभर में 16 हजार से अधिक टॉयलेट बनवाए। ताकि किसी और सुधा को दिक्कत ना हो। ये बात हम आगे करेंगे उससे पहले आपको ये बता दूँ कि सुधा को अपनी पहली जॉब कैसे मिली।

कॉलेज ख़त्म हो गया लेकिन सुधा की लड़ाई अभी तक खत्म नहीं हुई। टॉप करने के बाद भी उन्हें जॉब मिलने में परेशानी हो रही थी। कहीं भी लड़कियों को हायर नहीं किया जा रहा था। इस बात की नाराज़गी ज़ाहिर करने के लिए सुधा ने TATA GROUP के मालिक JRD TATA को उनकी कंपनी में जेंडर डिशक्रिमिनेशन करने को लेकर आपत्ति जताते हुए पत्र लिखा।

इसके बाद JRD TATA ने उन्हें विशेष इंटरव्यू के लिए आमंत्रित किया। सुधा का इंटरव्यू प्रभावशाली था और उन्हें टाटा मोटर्स में जॉब मिल गई। उसी दौरान उन्हें अमेरिका की एक कंपनी से जॉब के लिए ऑफर आया लेकिन अपने पिता के कहने पर उन्होंने उस जॉब को स्वीकार न करते हुए अपने देश में रहकर काम करने की ठानी। इस तरह सुधा टाटा मोटर्स में काम करने वाली पहली महिला इंजीनियर बनी। उन्होंने सन् 19चौहत्तर-19इक्कासी तक पूणे में काम किया और फिर मुंबई आ गई।

काम के दौरान ही उनकी मुलाक़ात उनके साथ काम करने वाले व्यक्ति नारायण मूर्ति से हुई। नारायण मूर्ति एक बहुत ही काबिल व्यक्ति थे। नारायण मूर्ति को सुधा से प्यार हो गया था और उन्होंने बड़े ही अन रोमांटिक तरीके से अपने प्यार का इज़हार किया। सुधा ने अपने घरवालों से बात की। पहले तो उनके पिता नहीं माने लेकिन जब नारायण मूर्ति को अच्छे जगह पर काम मिल गया तो उन्होंने शादी करने में देर नहीं की।

शादी के तीन साल बाद ही नारायण मूर्ति ने अपनी कंपनी इंफोसिस शुरू की। इस काम के लिए उन्हें सुधा की मदद की जरूरत थी। सुधा ने अपना जॉब छोड़ने का फैसला किया। सुधा की जेआरडी टाटा से पहली और आखरी मुलाक़ात उसी दौरान हुई। JRD TATA सुधा के जॉब छोड़ने की खबर पर बहुत हैरान हुए। सुधा ने उन्हें बताया कि उनके पति अपनी कंपनी शुरू करना चाहते है जिसके लिए उन्हें सुधा के साथ कि जरूरत है।

सुधा अपने घर को संभालने लगी थी। शुरुआती समय में नारायण मूर्ति ने घर को दफ्तर बना लिया था। अपनी कंपनी शुरू करने के लिए नारायण मूर्ति को पैसे की जरूरत थी उस समय सुधा ने अपने सेविंग से 10,000 रुपये दिये थे।





सुधा मूर्ति फिल्मों, किताबों और घूमने फ़िरने की बहुत शौकीन है। एक बार तो उन्होंने एक साल में 365 फिल्में देख ली थी। सुधा ने घर की ज़िम्मेदारी के दौरान लिखना शुरू किया। उनकी लिखी किताबों की 1.5 मिलियन कॉपी बिक चुकी है जिसमें बच्चों की लिखी कहानियां, ट्रेवलॉग और 24 नॉवेल शामिल है।

सुधा मूर्ति इन्फोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन और गेट्स फाउंडेशन की सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल पहलों की सदस्य हैं। उन्होंने कई अनाथालयों की स्थापना की, ग्रामीण विकास के प्रयासों में भाग लिया, कंप्यूटर और लाइब्रेरी सुविधाओं के साथ सभी कर्नाटक के सरकारी स्कूलों को प्रदान करने के आंदोलन का समर्थन किया। हार्वर्ड विश्वविद्यालय में 'द मूर्ति क्लासिकल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया' की स्थापना भी की।

सुधा मूर्ति ने कर्नाटक के सभी स्कूलों में कंप्यूटर और लाइब्रेरी की सुविधा शुरू करने के लिए एक साहसी कदम उठाया और कंप्यूटर साइंस पढ़ाया। उन्हें 1995 में रोटरी क्लब बैंगलोर में "बेस्ट टीचर अवार्ड" मिला। उनको सामाजिक कार्यों में साहित्य में उनके योगदान के लिए जाना जाता है। करोड़ों की मालकिन होने के बावजूद, सुधा एक सिंपल लाइफ जीती है।

सुधा मूर्ति एक बार काशी में विश्वनाथ मंदिर घूमने गई थी। वहाँ उन्होंने स्वामी के सामने साड़ी की शॉपिंग का अपना शौक त्याग दिया था। उनके बताए अनुसार उन्होंने पिछले 21 सालों में एक भी नई साड़ी नहीं खरीदी है।

अमिताभ बच्चन के मशहूर शो 'कौन बनेगा करोड़पति' से सुधा मूर्ति पिछले साल अचानक देश भर में चर्चा में आ गईं. इससे पहले बहुत कम लोग उन्हें जानते थे. ये सीजन 11 का आखिरी एपिसोड था. अमिताभ बच्चन ने उनका परिचय 'साधारण जीवन बिताने वाली असाधारण महिला' के रूप में कराया. शो में बिग बी ने अपने से सात साल छोटी सुधा के पैर छुए. इस मौके पर सुधा ने अपनी जिंदगी के कई किस्से शेयर किए. शो में सुधा मूर्ति ने खुद को 'एक कम खर्चीली पत्नी बताते हुए सोशल वर्क में आनंद लेने वाली महिला' बताया. उन्होंने बताया-' चार साल मैंने लड़कों के कॉलेज में पढ़ाई की. मेरे कॉलेज में लड़कियों के लिए टॉयलट नहीं था. वहां मुझे टॉयलट का महत्व पता चला. उसके बाद फाउंडेशन का काम करते हुए मैंने दक्षिण भारत में कुल 16 हजार टॉयलट बनवाए.'

सुधा हमेशा कुछ नया सीखने की कोशिश करती हैं। कौन बनेगा करोड़पति' में अमिताभ बच्चन ने उनके बारे में कहा था- " मैं गर्व से कह सकता हूं कि मै उस देश का वासी हूं जिस देश में सुधा मूर्ति रहती हैं.' ये वाकई हर भारतवासी के लिए गर्व की बात है."