जानिए! एक ऐसी महिला के बारें में जिसने परिवार और समाज से लड़कर 1 लाख महिलाओं को दी स्किल ट्रेनिंग
महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई कि ट्रेनिंग से होने वाली कमाई से भरी, अपनी पढ़ाई कि फ़ीस
बिहार राज्य के भोजपुर जिले की रहने वाली अनीता गुप्ता ने अपने परिवार और समाज से लड़ाई लड़ कर 10 हजार महिलाओं को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाया हैं| इसके लिए उन्होंने ऐसे संघर्ष किए हैं जिनको जान कर आप हैरान हो जाएंगे| द क्रेजी टेल्स(The Crazy Tales) से बातचीत में उन्होंने ने बताया कि एक समय था जब उन्हें पढ़ने से रोका जाता था, और यहां तक कि घर से बाहर निकलने की आजादी नहीं थी| लेकिन फिर भी उन्होंने घर वालों से लड़ाई लड़ कर, पढ़ाई भी की, और एक एनजीओ के माध्यम से लाखों महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई की ट्रेनिंग देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया| चलिए जानतें हैं अनीता गुप्ता के संघर्षो की कहानी|
8 साल की उम्र में पढ़ने का किया फ़ैसला- अनीता गुप्ता अपनी बीती जिंदगी को याद करके कहतीं हैं, कि जब वह बहुत छोटी थी, तभी उनके पिता का निधन हो गया| उसके बाद उनकी माँ उनको नाना के यहां लेकर चली गईं थीं| लेकिन कुछ महीनों बाद उनके परिवार के लोगों ने उनकी माँ को और उन्हें फिर से घर बुला लिया| वापस आने के बाद ससुराल वाले उनकी माँ के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया करते थे| रात काम करवाते और जरा सी गलती होने पर उन्हें मारते-पिटते थे| अनीता कहतीं हैं कि उनका संबंध एक बड़े घराने से था| बावजूद इसके वहां लड़कियों को पढाई-लिखाई करने की आजादी नहीं थी| फिर भी उन्होंने ने अपने घर वालों से पढ़ने के लिए आग्रह किया लेकिन वह तैयार नहीं हुए, और यह कहते हुए पढ़ाई से मना कर दिया कि पढ़-लिख कर क्या करोगी| अगर घर से बाहर निकलोगी तो घर वालों की बेइज्जती होगी|
जानती थी पढ़ाई कि अहमियत- एक बार अनीता के सामने एक ऐसी घटना घटी| जिसकी वजह से उनको पढाई कि अहमियत अच्छी तरह से समझ आ गई थी| हुआ! ये कि एक बार वह अपने नाना के यहां गईं थी| उसी दौरान उनके तीन मामा को एक पागल कुत्ते ने काट लिया और उन तीनो की मौत हो गई| उसके बाद उनके नाना ने अपना वंश बढ़ाने के लिए पैसे से एक लड़की ख़रीद लाए थे| तब उन्होंने देखा कि उनके नाना उनकी नानी को हमेशा कुछ ना कुछ कहते रहते थे, और पढ़ाई-लिखाई को लेकर हमेशा ताने मारते थे| नानी की बेबसी देखकर उनको लगा कि मेरे पिता भी नहीं हैं, अगर ऐसे हालात में, मै पढूंगी नही और मेरे हाथ में कोई हुनर नहीं होगा, तो आगे कि जिंदगी बहुत कठिन रहेगी| उसके बाद उन्होंने पढ़ाई करने का दृढ संकल्प किया| द क्रेजी टेल्स से (The Crazy Tales)अनीता ने बताया कि मैंने अपनी माँ से पढ़ने कि बात कही तो उनकी माँ ने जैसे-तैसे करके घरवालों को मनाया और पढ़ाई के लिए राजी किया| 10वीं तक की पढ़ाई के बाद उन्हें पढ़ने से रोका गया और उनके पास पढ़ने के लिए पैसे नही थे| लेकिन उन्होंने यह फैसला किया की वह अपने पैसे से पढ़ेंगी| इसके लिए उन्होंने लड़कियों को स्किल ट्रेनिंग देने की शुरुआत की|
1993 में देनी शुरु की सिलाई-कढ़ाई की ट्रेनिंग - अनीता गुप्ता ने द क्रेजी टेल्स को बताया कि उन्होंने मात्र 14 साल की उम्र में अपने गांव कि दो लड़कियों को मूर्ति बनाने और सिलाई,कढ़ाई सिखाने के लिए 25 रूपये महीने कि फ़ीस पर लडकियों को ट्रेनिंग देना शुरू किया| लेकिन अनीता को इस काम को भी करने से रोका गया| और यहां तक कि उनके चाचा ने घर के बाहर लगे क "भोजपुर महिला कला केंद्र" के पोस्टर को फाड़ कर होलिका में जला दिया| फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने फ़ैसले पर अडिग रहीं| वह कहतीं हैं कि जब मैंने अपने गाँव के साथ ही अगल-बगल के गाँव में बताया कि हमारे घर पर महिलाओं और लड़कियों को स्किल ट्रेनिंग दी जाती हैं| और जब इस बात की जानकारी मेरे चचेर भाई को हुई, तो उसने मुझसे बहुत झगड़ा किया| लेकिन मै भी अपनी बात पर अडिग रही| और उन्होंने अपने भाई से कहा कि मै यह काम करूंगी, मै कोई गलत काम नहीं कर रही हूँ| उसके बाद धीरे-धीरे कई महिलाएं आने लगी और उनसे सिलाई, कढ़ाई, मूर्ति बनाने का काम सिखने लगी| और उससे जो पैसे मिलते| उनसे वह अपनी पढ़ाई करती| उन्होंने आगे बताया कि मैंने काम के साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी और आख़िरकार अपना बी.ए पूरा कर के ही दम लिया| उन्होंने बताया कि मै काम में ज्यादा व्यस्त होने की वजह से एम.ए. नही कर सकी|
साल 2000 में खोला एनजीओ- अनीता ने द क्रेजी टेल्स से बातचीत के दौरान बताया कि धीरे-धीरे कर के उनसे बहुत सी महिलाएं जुड़ गई| और उन्होंने सिलाई के साथ ही कई तरह की चीजें बनानी सीख ली थी, जैसे फैंसी आभूषण बनाना, खिलौने बनाना, आदि| उसके बावजूद उनकी चुनौतिया कम नही हो रहीं थी क्योंकि बहुत सी महिलाएं ऐसी थी जिनको अपने घर से विरोध का सामना करना पड़ रहा था और उन्हें काम सीखने से रोका जा रहा था| फिर भी वह घर-घर जाती और महिलाओं को अपने काम के बारें में बताती और उनके घर वालो से बात करके उन्हें भेजने के लिए आग्रह करतीं| ऐसे ही कई सालों तक चलता रहा और फिर साल 2000 में अनीता ने भोजपुर महिला कला केंद्र को एक गैर सरकारी संस्था के तौर पर रजिस्टर्ड किया| उसके बाद से उनके सेंटर पर वह महिलाएं ज्यादा आने लगी जिनका कोई सहारा नहीं था, या आर्थिक रूप से कमजोर थी| ऐसी महिलाओं को वह हस्तशिल्प से जुडी चीजों की ट्रेनिंग देती और वह महिलाएं अपने हाथों से समानो को बना कर स्थानीय बाजारों में बेचती| अब तक अनीता ने अपने एनजीओ के माध्यम से 1 लाख महिलाओ को ट्रेनिंग दें चुकी है| और उनमे से 10 हजार महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो चुंकि है| 2007 से इस एनजीओ से जुडी रीता देवी कहतीं हैं कि मैंने यहाँ से बहुत कुछ सीखा हैं, आज मै साड़ी में बुनाई, कढ़ाई, फैंसी आभूषण के साथ ही हस्तशिल्प से जुडी सभी चीजों को बना सकतीं हूँ| रीता कहतीं हैं मेरे शराबी पति के निधन के बाद मै अपने दो बच्चों के साथ अपने माता-पिता के घर पर रहती हूँ| लेकिन मेरे पिता के पास उतने पैसे नहीं हैं, कि मेरा और मेरे बच्चों का खर्च उठा सकें| इसलिए मै अनीता जी के पास आई और अपनी परेशानी बताई| तो उन्होंने मुझे काम सिखाया| बीएमकेके(BMKK) से ट्रेनिंग लेकर मै आज 20 हजार रूपये महीना कमाई कर लेतीं हूं|
महिलाओं के साथ ही दलितों के लिए कर रहीं हैं काम- अनीता ने बताया की उषा कंपनी के साथ जुड़कर बिहार और झारखंड में उनके 3000 सिलाई-कढ़ाई स्कूल चल रहे हैं| इतना ही नहीं अनीता जर्मनी कि एक कंपनी अंधेरी हिल्फ़ के साथ जुड़कर दलित और महादलित के महिलाओं और बच्चों को साक्षर बनाने के साथ ही अच्छा जीवन जीने कि कला सिखा रहीं हैं| इसके साथ ही वह नाबार्ड और मिनिस्ट्री आफ़ टेक्सटाइल से जुड़कर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही स्किल ट्रेनिंग दें रहीं हैं| उनके इस नेक काम के लिए साल 2008 में बिहार सरकार ने उन्हें सम्मानित किया था| इसके साथ ही वह बिहार राज्य के MSME की ब्रांड अम्बेसडर भी रह चूकि हैं|
मिला नारी शक्ति पुरस्कार- 8 मार्च 2022 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर नई दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में आयोजित सम्मान समारोह में भोजपुर की महिला उद्यमी अनीता गुप्ता को प्रतिष्ठित 'नारी शक्ति पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने 2020 और 2021 के लिए देश भर में 29 उत्कृष्ट महिलाओं को पुरस्कार प्रदान किया। अनीता ने अब तक बिहार राज्य में 1 लाख से ज्यादा महिलाओं को विभिन्न हस्तशिल्प कौशल प्रशिक्षण दिया है| और 2000 में आरा में स्थापित अपने भोजपुर महिला कला केंद्र के माध्यम से 10,000 ग्रामीण महिलाओं को रोजगार प्रदान किया है। यह पुरस्कार उनके द्वारा किए गए उत्कृष्ट कार्य के लिए दिया गया हैं|