जानिए! कोसली भाषा के कवि हलधर नाग के बारे में, जिनके पास दिल्ली आकर 'पद्मश्री' लेने के नहीं थे पैसे
हलधर नाग सफ़ेद धोती, गमछा और बनियान पहने नगें पावं आए थे| उस दौरान वहां मौजूद देश के बड़े न्यूज चनलों पर यह बहस छिड गई थी
आज 21वीं सदी में लोग पैसे के पीछे पागल हुए हैं, ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहतें हैं| लेकिन फिर भी कुछ लोग आज भी इस भाग दौड़ से काफी दूर है ऐसे ही एक शख़्स की कहानी आज हम आपको बताने जा रहे है जिनका नाम है हलधर नाग। जोकि उड़ीसा के रहने वाले है हाल ही मे हलधर काफी चर्चा में रहे है जिसका कारण है पद्मश्री पुरस्कार में उनका चुना जाना। हालाँकि चर्चा इस बात पर ज्यादा रही, कि वह इस बड़े पुरस्कार को लेने नंगे पांव ही चले आये. लेकिन आपको बता दें कि हलधर ने ऐसा किसी दिखावे या नाम कमाने के लिए नहीं किया, बल्कि आपको जानकर हैरानी होगी ! कि हलधर के पास चप्पल या महंगे जूते खरीदने के पैसे तक नहीं थे वह तो! अपना सम्मान भी डाक द्वारा ही मंगवाना चाहते थे दरअसल हलधर नाग काबिल तो बहुत है, लेकिन उनके पास पैसे के नाम पर कुछ भी नहीं है, और वह इस दौर में भी धन-दौलत वाली इस मोह माया की जिंदगी से कोसों दूर हैं|
कौन है हलधर नाग?- भारत के उड़ीसा राज्य के बारगढ़ ज़िले में साल 1950 को हलधर नाग का जन्म एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था| बहुत ही छोटी उम्र 10 साल में उनके माता-पिता की मौत हो गई और वह अनाथ हो गए| इसी वजह से वह मात्र कक्षा 3 तक ही पढ़ाई कर सके| अनाथ की जिंदगी बिताने को मजबूर हलधर नाग एक ढाबे पर जूठे बर्तन धोने का काम करने लगे, और यही काम करते करते कई साल बीत गए| उसके बाद उन्होंने एक स्थानीय स्कूल में 16 साल तक बावर्ची के रूप में काम किया| फिर उन्होंने 1000 कर्ज लेकर एक स्कूल के सामने एक छोटी सी स्टेशनरी की दुकान खोल ली| हलधर नाग को लिखने का बहुत शौक था, इसलिए वह हर दिन कुछ न कुछ जरुर लिखते थे| उसी लिखने की कला के दम पर आज उनकी पहचान पूरे भारत में कोसली भाषा के कवि के रूप में हुई है|
पहली कविता ने आगे लिखने को किया प्रेरित- हलधर नाग ने साल 1990 में पहली कविता 'धोडो बरगच' (द ओल्ड बनयान ट्री) लिखी| इस कविता को लिखने के साथ ही उन्होंने 4 और कविताएँ लिख एक स्थानीय पत्रिका में प्रकाशन के लिए भेजा| उनके द्वारा रची सभी कविताएं उस पत्रिका में प्रकाशित हुई| नाग कहते हैं कि यह मेरे लिए बड़े सम्मान की बात थी,कि मेरी द्वारा रचित सभी कविताएं प्रकाशित हुई और मुझे आगे लिखने के लिए प्रेरित किया| उसके बाद फिर उनके लिखने का सिलसिला आज तक नहीं रुका| आज तक उन्होंने 20 महाकाव्य के साथ ही सैकड़ो कविताएं लिखी हैं| इनमें सबसे खास बात यह है कि उनके द्वारा लिखी एक-एक कविताएं उनको जुबानी याद हैं| आप उनसे, उनके द्वारा रचित रचनाओं में से कभी भी, कुछ भी, पूछ सकतें हैं|
दिल्ली जाने को नहीं थे पैसे- साल 2016 में जब उनके नाम की घोषणा की गई कि हलधर नाग को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा| जब इस बात की जानकारी हलधर नाग को हुई तब उनके खुशी का ठिकाना नहीं रहा, लेकिन अगले ही पल, जब उन्हें यह पता चला कि उनको पुरस्कार लेने दिल्ली जाना पड़ेगा, तब वह मायूस हो गए, क्योंकि उनके इतना पैसा नहीं था कि दिल्ली जाकर पुरस्कार ले सकें| तब हलधर नाग ने के तरकीब निकाली और उन्होंने एक पत्र लिखा कि साहिब मेरे पास दिल्ली आने के लिए पैसा नहीं है, कृपया मेरा पुरस्कार डाक के द्वारा भेज दिया जाए|
नगें पावं लेने गए पुरस्कार- भारत सरकार से 'पद्मश्री पुरस्कार' पाने वाले ओड़िशा के मशहूर लोक कवि हलधर नाग, जब राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से 'पद्मश्री पुरस्कार' ग्रहण करने पहुंचे तब उन्हें देख वहां मौजूद हर इंसान चकित रह गया| क्योंकि हलधर नाग सफ़ेद धोती, गमछा और बनियान पहने नगें पावं आए थे| उस दौरान वहां मौजूद देश के बड़े न्यूज चनलों पर यह बहस छिड गई थी, कि इतना काबिल इंसान ऐसा जीवन जीने को क्यों मजबूर हैं|