2010 में, बेंगलुरु के मल्लेश्वरम के निवासी डॉ सुनील कुमार हेब्बी ने अपने जीवन में एक अचानक बदलाव का अनुभव किया।

हुआ यूं कि हमेशा की तरह डॉ सुनील के लिए वो दिन भी आम सा बिजी डे था। वह तमिलनाडु में होसुर-चेन्नई राजमार्ग से यात्रा कर रहे थे, उनकी नज़र सड़क पर एक दुर्घटना पीड़ित पर पड़ी और वो बिना देरी किए उसे बचाने गए। इसके बाद वह पीड़ित के साथ नजदीकी अस्पताल गए।

एक दिन बाद, उसे पीड़िता की माँ का फोन आया जहाँ उसने डॉक्टर को बहुत धन्यवाद दिया और उसे अपने घर भोजन के लिए भी आमंत्रित किया।

डॉक्टर सुनील बताते हैं कि "मैं उनके घर गया और वहां मेरे समय के दौरान स्थिति की गंभीरता ने मुझे हिला कर रख दिया। अगर मैंने उस लड़के की मदद नहीं की होती, तो शायद वह अपनी चोटों के कारण दम तोड़ देता। लड़के की मां ने हाथ जोड़कर मुझे धन्यवाद दिया और उसके चेहरे से आंसू बह निकले।"

उस एक घटना ने डॉक्टर सुनील की पूरी जिंदगी बदल दी। साल 2011 में उन्होंने बीजीएस ग्लोबल हॉस्पिटल्स में अपनी नौकरी छोड़ दी, ताकि जरूरतमंद लोगों की सहायता कर सके। उन्होंने मातृ सिरी फाउंडेशन नामक एक एनजीओ की स्थापित की।

डॉ सुनील कहते हैं, "बीजापुर मेडिकल कॉलेज से डॉक्टर के रूप में योग्यता प्राप्त करना और एक अच्छे निजी अस्पताल में नौकरी पाना एक सपना था।" उनके परिवार ने उन्हें शिक्षित करने के लिए जो संघर्ष किया, उसके बारे में बोलते हुए, वे कहते हैं, "मेरी मेडिकल डिग्री पूरी करने के लिए मेरे परिवार को कर्ज लेना पड़ा। इसलिए स्वाभाविक रूप से जब मुझे अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी मिली, तो ऐसा लगा कि हमारी सारी परेशानियां खत्म हो गई हैं।"

दुर्घटना के शिकार व्यक्ति के साथ हुई घटना ने डॉ. सुनील को झकझोर कर रख दिया और जहां एक ओर उन्हें पता था कि उन्हें उन लोगों की मदद करने के लिए एक रास्ता खोजना होगा, जो इलाज का खर्च नहीं उठा सकते, वहीं उनके अपने परिवार की स्थिति ने उन्हें तुरंत छोड़ने की अनुमति नहीं दी।

डॉक्टर सुनील का कहना है कि "मैंने तब अपने सभी वीकेंड और काम से समय निकालने का फैसला किया, आर्थिक रूप से पिछड़े परिस्थितियों के रोगियों की मदद करने के लिए। मैंने अपनी जेब से पैसा लगाया।"

डॉ सुनील, अच्छी तरह से जानते हुए कि उनके पास केवल वीकेंड था। वह अधिक से अधिक रोगियों का इलाज करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपनी कार को पूरी तरह से मोबाइल क्लिनिक में बदलने का फैसला किया।

2011 में अस्पताल में अपनी नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने अपना सारा समय एक स्थान से दूसरे स्थान पर ड्राइविंग, रोगियों का इलाज करने में बिताना शुरू कर दिया। वे कहते हैं, "चेकअप कराने आने वाले लोगों फीस का खर्चा नहीं दे सकते हैं, मैं उनका इलाज मुफ्त में करता हूँ। वहीं मैं केवल उन मरीजों से फीस लेता हूं जो मुझसे कहते हैं कि वे मेरी फीस दे सकते हैं।"

भले ही डॉ सुनील एक दशक से अधिक समय से अपना मोबाइल क्लिनिक चला रहे हैं, उनका कहना है कि COVID-19 एक वास्तविक गेम चेंजर रहा है और वह कभी भी व्यस्त नहीं रहे हैं। "शुरुआत में, पहली लहर के साथ हममें से किसी को भी नहीं पता था कि हमें क्या झटका लगा है। COVID-19 के चरम महीनों के दौरान मेरा फोन नॉन-स्टॉप बजता था और मेरे पास किसी भी चीज या किसी और के लिए समय नहीं था।"

साल 2021 में, डॉ सुनील ने अपने भाई को COVID-19 की वजह से खो दिया और मोबाइल क्लिनिक को बंद करने के लिए उनके तत्काल परिवार का उन पर बहुत दबाव था। हालांकि, वे कहते हैं, "मुझे जो संकट के समय फोन आते हैं, वे मुझे बस स्विच ऑफ करके घर पर बैठने की अनुमति नहीं देते हैं।"

अब तक, डॉ सुनील ने 800 से अधिक चिकित्सा शिविरों का आयोजन किया है और बेंगलुरु और उसके आसपास के 1,20,000 से अधिक रोगियों को उपचार प्रदान किया है। वह स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपने एनजीओ द्वारा किए गए उत्कृष्ट कार्यों के लिए 2018 में भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू से प्राप्त एक सहित कई पुरस्कारों शामिल हैं।