आज भारत ही नही बल्कि दुनिया के हर कोने में कचरा एक बहुत बड़ी समस्या बन चुका हैं | ये कचरा हम जो हर दिन खाने पीने की चीजों का इस्तेमाल करते है, वहीँ से निकलता है | कचरों में सबसे ज्यादा खतरनाक है प्लास्टिक, जो कभी ख़त्म नहीं होता है | अक्सर शहर के किसी न किसी कोने में कचरे का ढेर लगा दिख जाता है, जो सड़-गल कर पूरी तरह से नष्ट नहीं हो पता , जिसकी वजह से हमारा वातावरण प्रदूषित होता है साथ ही कई तरह की बीमारियों को जन्म देता है | इस समस्या से सिर्फ इंसानी जीवन ही नहीं प्रभावित है, बल्कि पशु-पक्षियों को भी बहुत नुकसान हो रहा है | इन्ही कारणों से दुनिया के हर कोने में प्लास्टिक कचरे को रिसाइकल करने का प्रयास किया जा रहा है | जिससे की उस प्लास्टिक को दोबारा प्रयोग में लाया जा सके | इसी क्रम में तमिलनाडु राज्य के मदुरै जिले के टीसीई इंजीनियरिंग कालेज के एक प्रोफ़ेसर ने अपने अथक प्रयास और कड़ी मेहनत से प्लास्टिक कचरे को रिसाइकिल करने का नायाब तरीका ख़ोज निकाला है और आज उन्ही द्वारा रिसाइकिल किये कचरे से सड़के बनाई जा रहीं है | उनकी इस खोज की वजह से उनका नाम 'प्लास्टिक मैंन ऑफ़ इंडिया' पड़ा है | उनकी इस उपलब्धि के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है |


कौन है ? प्लास्टिक से सड़क बनाने वाले प्रोफ़ेसर – प्लास्टिक कचरे को रिसाइकिल करके सड़क बनाने वाले प्रोफ़ेसर का नाम राजगोपालन वासुदेवन है, वह मदुरै के टीसीई इंजीनियरिंग कॉलेज में केमिस्ट्री के प्रोफ़ेसर हैं | उनको अपने इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने में दस साल लग गए, तब जाकर उन्हें कहीं सफलता मिली | उन्होंने इसका सफल प्रयोग साल 2002 में थिएगराजार कॉलेज के परिसर में प्लास्टिक कचरे से सड़क बना कर की | वासुदेवन अपने इस प्रोजेक्ट को तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता के पास लेकर गए | उनके इस प्रोजेक्ट को देख कर सीएम जयललिता ने वासुदेवन के काम की तारीफ की और ओके (ok) कहा, सीएम ने उनके इस काम में हर संभव मदद करने का वादा किया, इस तरह से वासुदेवन के इस तकनीकी को मान्यता मिल गई |

इस तकनीकि में पहले प्लास्टिक कचरे को रिसाइकिल किया जाता है और उसके बाद प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े बनाए जाते है फिर उन टुकडो को डामर के मिला कर रोड बनाई जाती है |


भारत सहित कई देश कर रहे इस तकनीक का इस्तेमाल – जब राजगोपालन वासुदेवन का यह आइडिया देश दुनिया ने जाना, तब उनके इस आइडिया को खरीदने की बहुत कोशिश की गई| लेकिन वासुदेवन ने इस तकनीक को किसी देश को देने से साफ़-साफ़ इंकार कर दिया, और उन्होंने का कहा कि यह तकनीक मै निःशुल्क भारत सरकार को सौपं दूंगा जिससे अपने देश का विकास हो, और सड़क बनाने में मदद मिल सके| इसके बाद उन्होंने अपनी इस तकनीक को भारत सरकार को सौपं दी| आज वासुदेवन की तकनीक से कई हजार किलोमीटर तक सड़क बनाई जा चुकी है | उनकी इस तकनीक का इस्तेमाल भारत के नगरों, शहरों, के साथ-साथ पंचायतो में भी किया जा रहा है |

वासुदेवन के प्लास्टिक कचरे से सड़क बनाने की तकनीक से प्रभावित होकर सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय ने प्लास्टिक कचरे का सड़क बनाने में उपयोग करने के लिए के एक मिशन भी लांच किया है | इस मिशन के तहत प्लास्टिक कचरा प्रबंधन पर जागरूकता फ़ैलाने के लिए 26 हजार लोगों को जोड़ा जा चुका है | बड़े पैमाने पर प्लास्टिक कचरे को इकठ्ठा किया जा रहा है ताकि उसको रिसाइकिल करके सड़क बनाने में इस्तेमाल किया जा सके | हमारे देश में पहले से ही प्लास्टिक से लगभग 1 लाख किलोमीटर तक सड़क बनाई जा चुकी है | साथ ही साथ इस तरह की सड़क बनाने का काम देश के कई कोनों में चल रहा है |

वासुदेवन की यह तकनीक दुनिया के कई अन्य देश भी अपना रहें है| उनमे सर्बिया, इंडोनेशिया, बाली, नीदरलैंड अन्य शामिल हैं |