उत्तर प्रदेश के बनारस के रहने वाले चंद्र मिश्रा ने कुछ ऐसा कर दिखाया जिसकी कल्पना भी करना मुश्किल है। बनारस शहर को बैगर फ्री कराने का संकल्प लेते हुए उन्होंने 'Beggars corporations' की स्थापना की जिसका स्लोगन है- 'डोंट डोनेट, इन्वेस्ट।'

चंद्र मिश्रा बताते हैं कि "इस समय 12 परिवारों के 55 भिखारी स्वयं सहायता समूह बनाकर बिजनेस मैन बन गए हैं। वे न केवल कॉन्फ्रेंस बैग, लैपटॉप बैग, कागज और कपड़े के सामान्य बैग बना रहे हैं बल्कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों, वाराणसी के होटलों में इसकी सप्लाई भी कर रहे हैं।"

उन्होंने पिछले साल दिल्ली में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भाग लेने वाले प्रतिनिधियों के लिए सैकड़ों बैग की आपूर्ति की।



अपनी बात जारी रखते हुए चंद्र मिश्रा ने कहा "मैं यहां दान के माध्यम से भिखारियों के पुनर्वास के लिए नहीं आया हूं, लेकिन मैं यहां उन्हें entrepreneurs में बदलने के लिए हूं। मैं चाहता हूं कि वे परिश्रम के महत्व को समझें। मैं उन्हें रोजगार देना चाहता हूं और सम्मानजनक जीवन जीने में उनकी मदद करना चाहता हूं।"

भिखारियों के लिए काम करने की सोच उनके दिमाग में तब आई जब उन्हें पता चला कि भारत के 413,670 भिखारियों (सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के आंकड़े) को सालाना 34242 करोड़ (बिल एंड बेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की 2017 रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार) दान करते हैं।

इसके बाद ही उन्होंने सोचा कि अगर उस राशि का निवेश किया जाए तो यह और अधिक धन पैदा करेगा। भारत में, पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक 85000 भिखारी हैं, उसके बाद उत्तर प्रदेश में 65,835 भिखारी हैं। वाराणसी जहां वो काम करते हैं, वहां 12,000 से अधिक भिखारी हैं, जिनमें से 6000 स्वस्थ जवान हैं। अगर दान किए गए पैसे का इस्तेमाल उन्हें रोजगार पैदा करने वालों के प्रशिक्षण के लिए किया जाए तो यह अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदल देगा।



भिखारियों को रोजगार देने के साथ साथ उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा देना भी चंद्र मिश्रा का उद्देश्य है। इसके लिए उन्होंने मॉर्निंग स्कूल ऑफ लाइफ की स्थापना भी की है। चंद्र मिश्रा का कहना है कि वो 2023 तक बनारस को बैगर फ्री कर देंगे।