न जाने कैसी कशिश है कि जो इसके पास जाता है फिर उसी का होकर रह जाता है" ऐसा कह जितेंदर माणि जी रुंधे हुए गले से बार-बार अपनी प्रिय पत्नी को याद करते है जो अब इस दुनिया में नहीं है दोस्तों यह कहानी है दिल्ली पुलिस के डीसीपी मेट्रो जितेंद्र मणि त्रिपाठी जी की,

उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले के बाल-भीटी गाँव में जन्में जितेंदर मणि त्रिपाठी की, बचपन से ही पढाई में तेज़ जितेंदर जी अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान अपने फूफ़ा जी श्री चंद्र प्रकाश मिश्र जी के साथ रहा करते थे जोकि उस समय बिजनौर के और बाद में जौनपुर के SDM थे अपने फूफा के साथ रहने के दौरान जितेंद्र जी ने भी अपने फूफ़ा की तरह ही भविष्य में एक बड़ा अधिकारी बनने की ठान ली थी इसके बाद जितेंद्र जी अपने सपने को पूरा करने में जुट गए, इसके लिए उन्होंने देश के सबसे बड़े और मुश्किल एग्जाम के तौर पर देख जाने वाले एग्जाम भारतीय सिविल सर्विस की परीक्षा की तैयारी की,साथ राज्यों की परीक्षा भी,जिसमे जितेंद्र जी को साल 2001 में मध्यप्रदेश परीक्षा में 35वीं रैंक हासिल की, और उन्होंने सहायक विकास आयुक्त के तौर पर कमान संभल ली, वही दूसरी तरफ जितेंदर ने नेशनल स्तर की परीक्षा सिविल सेवा परीक्षा का एग्जाम भी पास कर लिया,और जितेंद्र जी ने देश भर में 243वीं रैंक हासिल की, नेशनल एग्जाम पास होने के बाद जितेंद्र जी ने मध्यप्रदेश से सहायक विकास आयुक्त पद से इस्तीफ़ा दे, साल 2002 में दिल्ली आकर झड़ौदा कलां नजफगढ़ में ACP के तौर पर प्रशिक्षण शुरू किया.




इसी दौरान जितेंद्र जी को उनके होने वाले ससुर श्री भवानी प्रसाद मिश्र जी जोकि खुद एक IRS अफसर थे और दिल्ली के लोधी कॉलोनी में रहते थे का फ़ोन आया, फ़ोन उठाते ही वो जितेंद्र जी से बोले कि आपके पिताजी से बात हो गयी है और आपकी शादी फिक्स हो गयी है वो तो नहीं पर हैम आपको देखना चाहते हैं और इतना कह उन्होंने फ़ोन रख दिया, ऐसे मेंजितेंद्र जी के दोस्त बड़े हैरान थे न फोटो, न मुलाकात, न बायोडाटा न ही एक बार चेहरा देखा,शादी से पहले जितेंद्र जी को सिर्फ इतना पता था की वो दिल्ली के जाने- माने कॉलेज लेडी श्री राम की टॉपर है साथ ही पेंटिंग-संगीत में उनकी खासी दिलचस्पी है बस इतनी जानकारी थी खैर इलाहबाद में 22 जून 2002 को जितेंद्र जी और किरण जी एक दूसरे के साथ परिणय सूत्र में बंध गए। शादी के बाद जितेंद्र जी और किरण जी ने एक नयी जिंदगी शुरुआत की,जैसे जैसे समय बीत रहा था जितेंद्र जी को किरण जी को करीब से जानने का मौका मिल रहा थाजितेंद्र जी इसको महज एक संयोग ही कहते है कि वो जिस प्रकार का जीवनसाथी का सपना देखते थे किरण उससे भी कई गुना ज्यादा बेहतर जीवन संगिनी थी

दिल्ली में लगभग 2 साल बिताने के बाद साल 2004 में जितेंद्र जी की पोस्टिंग पोर्टब्लेयर में हो गयी,इसी कार्यकाल के दौरान वहां सुनामी आयी, जिसमे हज़ारो लोग मारे गए जबकि हज़ारो लोग बेघर हो गए, इस त्रासदी में जितेंदर जी ने बहुत महवपूर्ण भूमिका निभाते हुए हज़ारों लोगो को विस्थापित करने में बहुत मदद की और साथ ही जहां तक कोई मदद नहीं पहुंच पाती थी वहाँ जितेंद्र जी खुद जाकर लोगो की मदद किया करते थे जिसके लिए जितेंद्र जी को "कठिन सेवा पदक"सम्मान से सम्मानित किया गया, पोर्ट ब्लेयर में लगभग 2 साल से अधिक समय तक जिम्मेदारी निभाने के बाद जितेंदर की पोस्टिंग वापस दिल्ली सुप्रीम कोर्ट जहां जितेंद्र जी ने अपनी मात्र 5 महीनों की पोस्टिंग के दौरान ही सालो से बदहाल सुरक्षा व्यवस्था को सुधार दिया हालाँकि ये इतना आसान नहीं था इसके लिएजितेंद्र जी को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा,इसके बाद जितेंदर ने दिल्ली के विभिन्न इलाकों में अपनी सेवा दी, वही दूसरी तरफ किरण समय समय पर अपनी पेंटिंग के प्रदर्शन करती थी और जितेंद्र जी का साथ बखूबी निभा रही थी जितेंद्र जी बताते है कि किरण सिर्फ एक पत्नी ही नहीं बल्कि एक अच्छी साथी भी थी




लेकिन साल 2015 में जबजितेंद्र जी ने डीसीपी मेट्रो की जिम्मेदारी संभाली उसी दौरान किरण की तबियत अचानक ख़राब हो गयी, और जब जाँच कराई गयी तो पाया कि किरण जी को ब्रैस्ट कैंसर जैसी ख़तरनाक बीमारी हो गयी है बीमारी का पता चलते है ही नेजितेंद्र जी किरण जी को बेहतरीन से बेहतरीन मेडिकल सुविधा दिलाई लेकिन किरण की हालत में कोई सुधर नहीं हो रहा था धीरे-धीरे कैंसर का असर मस्तिष्क में फ़ैल गया, बावजूद इसके किरण जी अपने हमसफ़र जितेंद्र जी के लिए ऊपर वाले दुआ करने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी यहां तक की इतनी खतरनाक बीमारी होने के बावजूद किरण ने हर साल करवाचौथ जैसा कठिन व्रत अपने पति की लम्बी उम्र के लिए रखा, अपने आखिरी करवाचौथ के व्रत जोकि किरण ने साल 2017 में रखा था उस दौरान किरण ने जितेंदर से कहा "मणि मैं रहूं न रहूं, तुमको उम्र 100 बरस मिले।' कैंसर के कारण किरण का शरीर दिन-ब-दिन उनका साथ छोड़ता जा रहा था और इस साल 24 जनवरी 2018 को डॉक्टर और जितेंदर जी के सभी प्रयास के बावजूद जितेंदर मणि की प्रिय हमसफ़र इस दुनिया से चिर- निद्रा में विलीन हो गयी. किरण के जाने के बाद जितेंद्र जी खुद को बिलकुल अकेला महसूस करते है और किरण के आखिरी दिनों की ऑडियो-वीडियो निकालकर अक्सर देखते रहते है जितेंदर किरन की कहीं गयी बातो को याद करते रहते है जितेंदर ने अपने घर में वाल ऑफ मेमोरी भी बनाई है जिसमे उन्होंने किरण द्वारा बनाई गयी हर तस्वीर को बड़े सलीके सजा रखा है



किरण की याद में लिखी है किताब

किरण के जाने का बाद जितेंदर ने अपनी पत्नी की याद में एक किताब "कही तो हंसी हो" लिखी है जिसका विमोचन अगस्त हुआ.जितेंद्र जी बताते है इस पुस्तक से हुई कमाई का हिस्सा कैंसर पीड़ितों के लिए जायेगा। जितेंद्र जी AIIMS में दूर शहरों से कैंसर के इलाज़ के लिए आये मरीज़ो की मदद के लिए अक्सर जाते रहते है

आखिरी में जितेंद्र जी भरे हुए गले से अपनी पत्नी को याद करते हुए कहते है कि मैं मणि हूँ जो किरण के बिना नहीं चमक सकता।



सन्देश: जितेंद्र जी आने वाली युवा पीढ़ी के लिए कहते है रिश्ते में एक दुसरे को माफ़ करना सीखो और जो रिश्तो में कमिया है उसको मिलकर दूर करे. जो चीजे ज़िंदगी से खो जाती है दुबारा वापस नहीं आती।

जितेंदर ने कुछ शब्दों से अपनी बाते रखी है "मैं फरिश्ता नहीं इंसान हूँ मेरी पहचान है खता करना